Sunday 9 September 2012

1. How to destinate the success ?.......

1. "मंजिल और सफलताएक ही सिक्के के दो पहलू हैं 

गंभीरता, अपने पर विश्वास (Confidence), दृढ़-निश्चय, ईमानदारी और सही दिशा में बढ़ने का निर्णय ;
कोई हमें सिखा दे,
           यदि हम इसी बात का इंतजार करेंगे तो शायद करते ही रहेंगे क्योंकि आज के इस अति-गतिशील समाज में , हमारे हालातों (अनुभवों) से सीख-सीख कर हमें ही मंजिल की ओर बढ़ना है और भगवान से ही मदद की आशा रखनी है । 
              यहाँ हमें एक भ्रम का सामना भी करना पड़ सकता है कि ये सब होगा कैसे ? भगवान से हमें कैसे मदद मिलेगी ,  हमें किसी न किसी का सहारा तो लेना ही पड़ेगा .... , तब में  कहूँगा :- "तुम बे-सहारा हो तो किसी का सहारा बनो , तुमको अपने आप ही सहारा मिल जायेगा" ..... , ये सिर्फ कहने  के लिए नहीं है जरा सोचिये क्या वाकई हमने कभी किसी का सहारा बनने की कोशिश की ?...............
              आज जबकि किसी पर भी पूरी तरह विश्वास करना असंभव सा है, तब भी पूर्णतः संभव है "अपने ऊपर पूर्ण विश्वास करना".......और यही सफलता का मूल-मन्त्र है, कोई इसे स्वीकार करे और ना करे इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। ...........इसके बाद .....
             आज के दौर में सबसे अधिक जरुरी है "जिम्मेवार बनना"..... कोई भी जब जिम्मेवारी लेने में पीछे रहता है तब उसे पता नहीं होता कि उससे सफलता कितनी दूर जाने की तैयारी में है। .....
कुछ बिन्दुओं को याद रखना है जिन पर आगे की posts में बात करेंगे .....

1. अपने आप पर पूर्णतः विश्वास रखें ,

2. जिम्मेवारी ग्रहण करने में आगे खड़े हों ..,

3. किसी का सहारा बनने के लिए तत्पर हों ...(आदर्श सर्वोपरि रखकर),

4. याद रखें "जो आप चाहते हैं उसे पाने की प्रक्रिया में, अन्य किसी को परेशानी न उठानी पड़े" उल्टे उसका लाभ आपके साथ-साथ अन्य लोगों को भी हो ..........


डॉ. ए. के. सोनी
(A success name)
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